Business Law Definition in Hindi
व्यवसायिक सन्नियम : एक परिचय | Business Law : An Introduction
इस संसार में मानवजाति को शान्तिपूर्ण ढंग से जीवन व्यतीत करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। इन नियमों के द्वारा हमें कुछ दायित्व (Obligations) तथा कुछ अधिकार (rights) प्राप्त हो जाते हैं। समस्त देशों की सरकारें इन दायित्वों को पूरा करने तथा अधिकारों की रक्षा करने के लिए कुछ नियमों का निर्माण करतीं हैं, इन्ही नियमों को कानून (Law) कहकर संबोधित किया जाता है।
विलियम एनसन ने कानून के उद्देश्य एवं परिणामों को बतलाते हुए कहा है कि, "कानून का उद्देश्य आदेश देना है, इसके परिणाम से मनुष्य भविष्य के लिए सुरक्षा का अनुभव करेगा। यद्यपि मानव के कार्य प्रकृति की एकरूपता से नहीं मिलाये जा सकते, फिर भी मनुष्य ने कानून के द्वारा इस एकरूपता के पास आने का प्रयत्न किया है।"
( Tha object of law is order, and the result of order is that men are enabled to look ahead with some sort of security as to the future. Although human action cannot be reduced to the uniformties of the nature, men have yet endeavoured to reproduce by law something approaching to this uniformity. - William Anson.)
व्यवसायिक सन्नियम का अर्थ एवम परिभाषा (Meaning and definitions of Business Law)
अर्थ(Meaning): उद्योग, व्यापार तथा व्यवसाय से संबंधित नियमों एवम कानूनों को ही व्यवसायिक कानून अथवा व्यवसायिक सन्नियम ( Commercial Law or bussiness law) कहा जाता है। व्यवसायिक सन्नियम से अभिप्राय उन सभी वैधानिक नियमों एवम सिद्धान्तों से है जो प्रायः व्यवसाय के संचालन में लागू और प्रयोग किये जाते हैं । यह सन्नियम उन सभी नियमों का समूह है जिसमें वव्यसायिक संबधों और व्यापार संबंधी क्रियाओं से सम्बंधित प्रत्येक वैध सिद्धान्तों का समावेश होता है। भारत में इस प्रकार के सन्नियम के।अलग रूप में न होने के कारण इसकी स्पष्ट एवम निश्चित परिभाषा देना कठिन है । फिर भी आम भाषा में वव्यसायिक सन्नियमका आशय उन वैधानिक नियमों से लिया जाता है जो व्यवसाय के संचालन में प्रत्यक्ष (direct) रूप में होते हैं।
परिभाषा (definitions):
1. सेन एवं मित्रा के अनुसार, " कानून का वह भाग, जो व्यवसायिक वर्ग के बीच होने वाले व्यवहारों को संचालित करता है , व्यावसायिक अथवा व्यावसायिक सन्नियम कहलाता है।" ( That part of law which regulates the transactions of Business community is called Commercial or Business Law. - Sen and Mitra.)
2. एम. सी. शुक्ला के अनुसार , " व्यावसायिक सन्नियम को राजनियम की उस शाखा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो व्यावसायिक सम्पति के संबंध में व्यावसायिक व्यवहारों से उत्पन्न हुए व्यापारियों के अधिकारों एवम दायित्वों से संबंध रखती है।" ( Business law may be defined as that branch of law which deals with the rights and obligations of business person arising out of business transactions in respect of Business property. - M.C.Shukla )
3. ए. के. सेन के अनुसार, " व्यावसायिक सन्नियम के अंतर्गत वे नियम सम्मिलित हैं जोकि व्यापारियों , बैंकरों तथा व्यवसायिओं के साधारण व्यवहारों से संबंधित है, और जो सम्पति के अधिकारों एवम वाणिज्य में व्यस्त व्यक्तियों के संबन्धों से संबंधित हैं।" ( Commercial Law includes the law applicable to ordinary transactions of merchants, bankers and traders and denotes that branch of law which relates to the rights of property and relations of persons engaged in Commerce. - A.K.Sen)
अधिनियम की आवश्यकता (Need of Law or Act) :-
वास्तव में अधिनियम की आवश्यकता हमें उस समय पड़ती है जब संबंधित पक्षकारों के बीच किसी विषय को लेकर आपस में झगड़ा उत्पन्न हो जाता है। इस अवस्था में झगड़े को निपटाने के लिए कुछ नियमों तथा परिनियमों का सहारा लेना जरूरी हो जाता है जिसके फैसले को दोनों पक्षकार स्वीकार करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यदि किसी कारणवश अधिनियम न होता तो निश्चित रूप से इन कठिनाइयों का हल निकालना अति कठिन हो जाता । अत: अधिनियम की आवश्यकता प्रकट हुई और जैसे कि कहा भी जाता है - "कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है" फलस्वरूप विभिन्न नियमों का जन्म हुआ।
व्यवसायिक सन्नियम के ज्ञान की आवश्यकता (Need of Knowledge of business Law ) :-
सिद्धान्तत: यह मन जाता है कि प्रत्येक नागरिक को अपने देश में प्रचलित नियमों तथा राजनियमों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। इस कारण कोई भी व्यक्ति अपने आप को कानून से अनभिज्ञ बताकर, बचने का ढोंग नहीं कर सकता है। एक साधरण(सरल) तथा आवश्यक नियम यह है कि कानून की भूल को क्षमा (माफ) नहीं किया जा सकता (Ignorance of Law is no excuse ) अर्थात यदि किसी व्यक्ति ने कोई गलती की है जो कि वैधानिक दृष्टि से दंड दिए जाने योग्य है तो उस व्यक्ति को यह कहकर माफ् नहीं किया जा सकता कि उसे कानून का ज्ञान नही था । अतः सभी को अधिनियम का ज्ञान होना अति आवश्यक है।
राजनियमों की जानकारी की कमी के कारण न तो हम अपने अधिकारों की मांग कर सकते हैं और न ही अपने दायित्वों को निभा सकते हैं। अतः यह स्पष्ट है कि " इस ज्ञान की आवश्यकता जीवन का संचालन ही सुखद नहीं बनाती अपितु जीने का एक सम्पूर्ण दर्शन (मार्ग) भी देती हैं।"
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Source: https://accountologyinhindi.blogspot.com/2020/03/business-law-introduction.html
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